आषाढ़ का एक दिन — मोहन राकेश

Aggarwalmona
2 min readOct 13, 2023
चित्र आभार: Pinterest

आषाढ़ सा एक दिन और बारिश की बूंदे। वैसी ही प्रेम कहानी, पर यहां गलत सिर्फ कालिदास।

अकसर हम कहानी की शुरुआत में ही हमारा मत तय कर लेते हैं, लुभावने किरदार हमेशा सही और कट्टर किरदार को नजरअंदाज करने की पाठक से पहले लेखक की आदत हो गई है, मोहन राकेश का प्रसिद्ध नाटक आषाढ़ का एक दिन मेरी इस बात को कहीं ना कहीं प्रमाणित करता है।

आषाढ़ का एक दिन मुझे मल्लिका और कालिदास से ज्यादा मल्लिका और विलोम की कहानी लगती है, जिसमें कालिदास सिर्फ एक हताश किरदार की तरह प्रतीत होता है जो हालात का सहारा लेकर प्रेम को न्यायोचित ठहराना (जस्टिफाई करना) चाहता है। जीवन में ऐसे किरदार हर जगह देखने को मिलते हैं, जिन्हें अपनी प्राथमिकता तय करनी नहीं आती। यह किरदार एक चीज के पीछे से दूसरी चीज और एक लक्ष्य से दूसरे लक्ष्य के पीछे होने में समय नहीं लगाते। आखिर में अनुभूति (रिअलाइजेशन) इन्हें प्रेम नहीं ग्लानि कराता है, जिसे संभवत प्रेम एवं नादानी समझ कर उन पर तरस खाया जाता है।

यह कहानी इसी तरह के प्राणियों पर एक करारा तंज होती है, हालांकि मुख्यतः लेखक का हीरो भी कालिदास ही दिखाई पड़ता है। नाटक के आखिर में इस्तेमाल की बड़ी और भावनात्मक (इमोशनल) पंक्तियां मेरे ख्याल से प्रेम को जस्टिफाई करने के लिए काफी नहीं है।

विलोम, जिसका वास्तविक अर्थ विपरीत है, को कालिदास के विपरीत दिखाया गया है। जहां कालिदास एक सफल लेखक बनते हैं, वही विलोम की लेखन यात्रा विपरीत रहती है। शायद कालिदास की सफल लेखन यात्रा को लेखक प्रेम के साथ जोड़कर जिंदगी में प्रेम महत्वता को दिखाना चाहते हैं, जैसे विलोम एक सफल लेखक कभी नहीं बन पाए क्योंकि मल्लिकाा शायद उनसे सच्चा प्रेम नहीं कर सकी।

परंतु प्रेम भाषा मुझे विलोम की सही और सरल लगती है, जिसमें अपने प्रेमी की प्रति चिंता दिखाई पड़ती है हालांकि विलोम और मल्लिका को इतना रोमांटिसाइज नहीं किया गया है।

अपने किरदार रंगीली और संगिनी एवं अनुस्वार और अनुनासिक के द्वारा लेखक कहानी में हास्य डालने का प्रयास करते हैं और बखूबी सफल भी रहते हैं।

एक घर के ढांचे एवं 3 अंकों में कहानी को बखूबी बुना गया है।

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