हिन्दी साहित्य के नाम एक चिट्ठी
प्रिय हिन्दी साहित्य,
मुझे माफ़ करना। यह माफी उस लंबे अंतराल के लिए हैं, जब मैंने आपकी महानता को नकारा था। एक पाठक के तौर पर मैंने आपकी सरलता को समझने में बहुत समय लिया। जब किताबों मे मेरी रुचि जाग्रत हुई तो मेरी शुरुआत भी उन्ही किताबों से हुई, जो आमतौर पर बाज़ारों में उपलब्ध होती है। वहाँ मैंने हिन्दी साहित्य ओर बिकाऊ भारतीय साहित्य को एक समझते हुए एक मत तय कर लिया। एक लंबे अंतराल तक सत्रहवीं-अट्ठारहवीं सदी का इंग्लैंड का साहित्य ही मेरी पसंद रहा। एक पुस्तक मेले में इंटर्नशिप के दौरान मुझे हिन्दी साहित्य को जानने का अवसर प्राप्त हुआ। यहाँ मैं यह कहना चाहूँगी कि जो भी अंग्रेजी साहित्य मैंने पढ़ा उससे मैंने बहुत कुछ सीखा। उसी पढे साहित्य की बदोलत, मैं आज अंग्रेजी भाषा के साथ एक अंग्रेजी दफ्तर में काम कर रही हूँ। परंतु जबसे मैंने अपनी पहली हिन्दी साहित्य की किताब पढ़ी है, मैं वापस नहीं जा पा रही हूँ।
आपसे मैंने सरलता और विशालता का पाठ सिखा। पारिवारिक ढांचे मे दुनिया की समस्याओं की झलक देखी। कुछ रचनाओं में जीवन का सत्य और संसार की महत्ता जानी। मेरी आज की खुशी और कल का ज्ञान, आप, हिन्दी साहित्य, हो।
आपकी आभारी
एक प्रशंसक